श्रावण के पावन माह में श्री मंदिर के माध्यम से हम आपको एक एक ऐसे मंत्र के बारे में बता रहे हैं, जिसका जाप और ध्यान तो कई लोग करते हैं, लेकिन उन्हें इसके बारे में शायद ही आपको पता हो। हम बात कर रहे हैं भगवान शिव के सबसे सरल लेकिन सबसे शक्तिशाली मंत्र ॐ नमः शिवाय की। कहते हैं कि इस सृष्टि की शुरुआत सदाशिव से होती है, जिनका न आदि है और ना अंत। साथ ही उनकी महिमा और भक्ति का वर्णन ठीक वैसा ही माना जाएगा, जैसे कि सूर्य को दीपक दिखाना।
ॐ नमः शिवाय मंत्र अपने आप में एक संपूर्ण शास्त्र है, एक साधना पथ है। भगवान महादेव शिव की संपूर्ण साधना पद्धति इस पावन मंत्र में समाहित है। इस प्रभावशाली मंत्र में तीन शब्द सम्मिलित हैं और हर एक शब्द अपने आप में परिपूर्ण और महत्वपूर्ण है। इस मंत्र की शुरुआत होती है ॐ से। साधना की सर्व सिद्धि के लिए जिस पहले शब्द की आवश्यकता है, वह है ॐ।
ॐ के जाप से अधोमुखी बुद्धि ऊर्ध्वमुखी बनती है, इससे इच्छा की पूर्ति ही नहीं, बल्कि इसका अभाव भी हो जाता है और जिसमें इच्छा का अभाव है, वह जगत का सम्राट है। ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म। इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। अ मतलब अकार, जो ब्रह्मा का वाचक है, उ मतलब ऊंकार जो कि विष्णु का वाचक है और म मतलब मकार जो शंकर का वाचक माना जाता है।
जब साधक ध्यान की गहनतम अवस्था में पहुंचते हैं, तो उन्हें सिर्फ एक ऐसी ध्वनि सुनाई देती है, और वो है ॐ। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण या मोक्ष की अवस्था का प्रतीक है। इस मंत्र का जप करने से कुंडलिनी के सारे चक्र एक साथ जागृत होने लगते हैं।
इसके बाद आते हैं शेष दो शब्द नम: और शिवाय। नमः शिवाय का अर्थ है “शिव को नमस्कार” या “सबका मंगल करने वाले को नमस्कार” है। इसे शिव पंचाक्षर मंत्र या पंचाक्षर मंत्र के रूप में भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “पांच अक्षर” वाला मंत्र। यह भगवान शिव को समर्पित है।
यह मंत्र श्री रूद्रम चमकम और रुद्राष्टाध्यायी में “न”, “म:”, “शि”, “वा” और “य” के रूप में प्रकट होता है। इसमें “न” ध्वनि पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है, “मः” ध्वनि पानी का, “शि” ध्वनि अग्नि का, “वा” ध्वनि प्राणिक या प्राण वायु का और “य” ध्वनि आकाश का प्रतिनिधित्व करता है। इन शब्दों के सम्पूर्ण अर्थ के अनुसार “सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैली हुई चेतना या ऊर्जा एक ही शिव है”।
इस प्रकार से ॐ नमः शिवाय मंत्र सम्पूर्ण होता है। इस मंत्र का जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आनंद और निर्वाण दोनों देने वाला है यह मंत्र। जो इस मंत्र को निरंतर मन में धारण करता है वह भी शीघ्र ही शिवस्वरूप बन जाता है। अक्सर लोगों के मन में प्रश्न उठता है कि इस मंत्र का जप या ध्यान कब करना चाहिए।
तो हम बता दें कि, वेदों और पुराणों में इस अद्भुत मंत्र का जाप करने का कोई निश्चित समय नहीं है। आप जब चाहें पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके, योग मुद्रा में बैठकर इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। वहीं, श्रावण माह में सोमवार के दिन किया गया जप इसके प्रभाव को और ज्यादा बढ़ा देता है।
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