पृथ्वीराज चौहानका जीवन परिचय (Prithviraj Chauhan Biography)
संपूर्ण नाम | पृथ्वीराज चौहान |
अन्य नाम | राय पिथौरा, भारतेश्वर, अंतिम हिंदू सम्राट |
जन्म | 1149 ई. में |
जन्म स्थान | गुजरात राज्य (भारत) |
माता का नाम | कर्पुरा देवी। |
पिता का नाम | राजा सोमेश्वर चौहान।
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पत्नी | राणी संयोगिता,जम्भावती, पडिहारी,पंवारी इच्छनी,दाहिया,जालन्धरी,गूजरी,बडगूजरी,यादवी, पद्मावती,यादवी |
वंश का नाम | शशिव्रता,कछवाही,पुडीरनी,शशिव्रता,इन्द्रावती |
भाई | हरिराज (छोटा) |
बहन | पृथा (छोटी) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
संतान का नाम | गोविंदराजा |
धर्म | हिंदू |
मृत्यु तिथि | 11 मार्च 1192 |
मृत्यु स्थल | अजयमेरु (अजमेर), राजस्था |
पृथ्वीराज चौहान का जन्म, परिवार एवं शुरुआती जीवन (Birth, Family and Early Life)
सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के महान राजाओं की सूची में गिने जाने वाले शूरवीर और पराक्रमी योद्धा पृथ्वीराज चौहान का जन्म साल 1149 में हिंदुस्तान में हुआ था। इनके पिता जी का नाम महाराजा सोमेश्वर था, वे उस समय राजस्थान में अजमेर राज्य के राजा थे, वही पृथ्वीराज चौहान जी की माता जी का नाम कपूरी देवी था। जब पृथ्वीराज चौहान पैदा हुए, उसी दौरान अजमेर में खलबली मच गई क्योंकि पृथ्वीराज चौहान जी का जन्म इनके माता-पिता की शादी होने के तकरीबन 12 साल के बाद हुआ था और इसीलिए कई लोगों को पृथ्वीराज चौहान जी के होते हुए उनका अजमेर का उत्तराधिकारी बनना असंभव लगने लगा और इसीलिए लोगों ने इनके खिलाफ षड्यंत्र रचना चालू कर दिया परंतु पृथ्वीराज चौहान के आगे किसी की भी साजिश कामयाब नहीं हुई।
पृथ्वीराज चौहान को अंतिम हिंदू सम्राट और राय पिथौरा भी कहा जाता है। यह एक महान पराक्रमी और शूरवीर हिंदू राजपूत राजा थे। पृथ्वीराज चौहान का नाम उन गिने-चुने राजाओं में लिया जाता है जिन्हें शब्दभेदी बाण विद्या आती थी।
पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई की मित्रता (Prithviraj Chauhan and Chadravardai Friendship)
पृथ्वीराज और उनके बचपन के मित्र चंद्रवरदाई के बीच बहुत ही प्रेम था। एक प्रकार से यह दोस्त तो थे, परंतु यह दोनों एक दूसरे को दोस्त से ज्यादा भाई मानते थे। बता दें कि चंद्रवरदाई अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे। अनंगपाल तोमर वंश के राजा थे। आगे चलकर के दिल्ली के शासक के तौर पर भी चंद्रवरदाई ने कार्यभार संभाला, साथ ही उन्होंने पिथौरागढ़ का निर्माण पृथ्वीराज चौहान की सहायता से करवाया जिसे वर्तमान के समय में आप दिल्ली में जाकर देख सकते हैं क्योंकि इस समय इसे पुराने किले के नाम से जाना जाता है।
पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली पर उत्तराधिकार (Prithviraj Chauhan Succession to Delhi)
कपूरी देवी अपने पिता की एकमात्र संतान थी, इसलिए महाराजा अनंगपाल को हर दिन यही चिंता खाए जाती थी कि अगर उनकी मृत्यु हो जाएगी तो फिर उनके राज्य पर शासन कौन करेगा। इस प्रकार विचार करते हुए उन्होंने एक दिन अपनी बेटी और अपने दामाद के सामने अपने दौहित्र को राज्य का शासन भार देने की इच्छा जाहिर की और इस प्रकार इन तीनों की सहमति से पृथ्वीराज चौहान को उत्तराधिकारी बना दिया गया। जब साल 1166 में महाराजा अनंगपाल की मौत हो गई, तो उसके बाद दिल्ली की गद्दी के नए राजा के तौर पर पृथ्वीराज चौहान का राज्य अभिषेक पूरे वैदिक मंत्रोचार के साथ किया गया।
पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की प्रेम कहानी (Prithviraj Chauhan and Sanyogita Love Story)
जब पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता ने एक दूसरे को पहली बार देखा था तभी से वह दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठे थे और वह दोनों एक दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करने लगे थे। हालांकि जब इस बात की जानकारी संयोगिता के पिता जयचंद को हुई तो वह काफी क्रोधित हुए, क्योंकि वह पहले से ही महाराजा पृथ्वीराज चौहान से जलन का भाव रखते थे और इसीलिए वह पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता के संबंध के सख्त खिलाफ थे।
पृथ्वीराज से जलन का भाव रखने के कारण जयचंद हमेशा पृथ्वीराज को बेइज्जत करने का मौका ढूंढते रहते थे और उन्हें यह मौका तब मिला जब उनकी पुत्री का स्वयंवर उन्होंने आयोजित किया। रानी संयोगिता के स्वयंवर में उन्होंने आसपास के सभी पराक्रमी राजाओं को बुलाया परंतु उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को न्योता नहीं दिया। लेकिन पृथ्वीराज चौहान अपने प्यार के खातिर संयोगिता की मर्जी से ही स्वयंवर चालू होने से पहले ही महल में आ पहुंचे और उन्हें अपने साथ घोड़े पर बिठा करके लेकर चले गए।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता का विवाह (Prithviraj Chauhan and Sanyogita Marriage)
इसके बाद दिल्ली में आकर के दोनों का हिंदू विधि विधान से विवाह संपन्न हुआ और इसके बाद तो जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच काफी ज्यादा दुश्मनी बढ़ गई।
पृथ्वीराज चौहान की पराक्रमी सेना (Prithviraj Chauhan Army)
पृथ्वीराज खुद तो एक शूरवीर योद्धा थे ही, साथ ही उनकी सेना भी बहुत ज्यादा पराक्रमी होने के साथ साथ अत्यंत विशाल थी। प्राचीन लेखों के अनुसार पृथ्वीराज की सेना में कुल 300 से भी ज्यादा हाथी थे और इनकी सेना में 3,00000 से भी ज्यादा शूरवीर सैनिक शामिल थे, जो अलग अलग जाति के थे। अपनी इसी विशाल सेना के कारण पृथ्वीराज चौहान ने कई राज्यों के राजाओं को हराया और अपने राज्य का विस्तार किया परंतु पराक्रमी योद्धा की कमी के कारण तथा पृथ्वीराज चौहान को अपने आखरी युद्ध में मोहम्मद गोरी के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा। हालांकि इसमें भी कुछ अपवाद है।
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी की पहली लड़ाई (Prithviraj Chauhan and Mohammad Gauri 1st Fight)
पृथ्वीराज चौहान लगातार अपने राज्य का विस्तार करते रहते थे और इस प्रकार वह अपने राज्य का विस्तार करते करते पंजाब भी आ पहुंचे, जहां पर उस समय मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी का शासन चल रहा था। इस प्रकार पंजाब पर अधिकार करने के लिए पृथ्वीराज चौहान ने अपनी शूरवीर सेना को लेकर के मोहम्मद गौरी के ऊपर आक्रमण कर दिया और इस प्रकार इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने सबसे पहले हांसी, सरस्वती और सरहिंद नाम की जगह पर अपना अधिकार जमाया।
हालांकि इस युद्ध में मोहम्मद गौरी काफी ज्यादा घायल होने के बावजूद भी बच गया क्योंकि युद्ध भूमि में घायल हो जाने के बाद मोहम्मद गौरी के कुछ सैनिकों ने उसे घोड़े पर बैठा कर के युद्ध मैदान से बाहर कर दिया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस युद्ध में मोहम्मद गोरी की बहुत ही भारी पराजय हुई थी। मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच यह युद्ध सरहिंद नाम की जगह पर तराइन नाम के इलाके में हुआ था। इसीलिए इसे तराइन का पहला युद्ध भी कहा जाता है। इस युद्ध में तकरीबन 7 करोड़ से भी ज्यादा की संपत्ति पृथ्वीराज चौहान ने हासिल की थी जिसमें से कुछ उसने अपने पास रखी थी और बाकी अपने सैनिकों में बांट दी थी।
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी दूसरी लड़ाई (Prithviraj Chauhan and Mohammad Gauri 2nd Fight)
जब पृथ्वीराज चौहान ने स्वयंवर से पहले जयचंद की पुत्री संयोगिता का उसकी मर्जी से अपहरण कर लिया तो जयचंद पृथ्वीराज चौहान से काफी ज्यादा नफरत करने लगा और वह दूसरे ठाकुर राजाओं को भी पृथ्वी चौहान के खिलाफ भड़काने लगा और जब जयचंद को इस बात का पता चला कि मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच युद्ध चल रहा है तो वह मोहम्मद गौरी के साथ हो लिया और मोहम्मद गौरी तथा जयचंद ने साथ में मिलकर के साल 1192 में पृथ्वीराज चौहान के ऊपर हमला कर दिया।
इस युद्ध के दरमियान पृथ्वीराज ने अन्य राजपूत राजाओं से सहायता मांगी तो उन्होंने स्वयंवर वाली घटना के कारण पृथ्वीराज चौहान की सहायता करने से मना कर दिया। हालांकि फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने हार नहीं मानी और उन्होंने मोहम्मद गौरी के साथ युद्ध करना चालू कर दिया परंतु मोहम्मद गौरी की सेना में काफी अच्छे घुड़सवार थे और जयचंद का साथ मिल जाने के कारण उसे कई गुप्त बातें भी पता चल चुकी थी।
इस प्रकार इस युद्ध में काफी भीषण रक्तपात हुआ और अंत में पृथ्वीराज चौहान की सेना की पराजय हो गई। यह युद्ध भी तराइन में हुआ था इसीलिए इसे तराइन का द्वितीय युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध में हारने के बाद मोहम्मद गौरी की सेना के द्वारा पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें काफी दिनों तक जेल में रखा गया। हालांकि मोहम्मद गोरी ने जयचंद को भी नहीं छोड़ा। मोहम्मद गौरी के सैनिकों के द्वारा जयचंद की भी हत्या कर दी गई।
पृथ्वीराज चौहान की शब्दभेदी बाण विद्या (Prithviraj Chauhan’s Word of Mouth Science)
युद्ध में हारने के बाद जब पृथ्वीराज चौहान और उनके साथी चंद्रवरदाई को मोहम्मद गौरी के सैनिकों के द्वारा बंदी बना लिया गया तो उसके बाद उन्हें कई दिनों तक जेल में रखा गया। इस प्रकार काफी दिनों तक जेल में रखने के बाद उन्हें एक दिन मोहम्मद गौरी के दरबार में पेश किया गया, जहां पर मोहम्मद गौरी के द्वारा पृथ्वीराज से कहा गया कि मैंने सुना है कि तुम्हें शब्दभेदी बाण विद्या आती है, मुझे देखना है कि आखिर तुम यह कैसे कर लेते हो।
इस पर चंद्रवरदाई ने कहा कि जी हां, महाराज पृथ्वीराज चौहान जी को शब्दभेदी बाण विद्या आती है। इसके बाद मोहम्मद गौरी के आदेश पर तांबे की बड़ी-बड़ी थालियां पीटी जाने लगी और पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण विद्या की सहायता से हर तांबे की थाली पर सटीक निशाना लगाया।
इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज चौहान से कहा कि चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान, बस इतना सुनते ही पृथ्वीराज चौहान जी ने मोहम्मद गोरी के गले पर निशान लगाया और फिर तीर छोड़ दिया जो सीधा मोहम्मद गौरी के गले में जाकर लगा जिसके कारण मोहम्मद गौरी की सिंहासन पर बैठे बैठे ही मृत्यु हो गई। बता दें कि, बंदी के तौर पर रहने के दरमियान ही मोहम्मद गौरी के सैनिकों के द्वारा पृथ्वीराज चौहान की आंखें फोड़ दी गई थी।
पृथ्वीराज चौहान और चंद्र बरदाई की मृत्यु (Prithviraj Chauhan and Chandravardai Death)
जब पृथ्वीराज चौहान के द्वारा शब्दभेदी बाण विद्या की सहायता से मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी की उसके ही दरबार में हत्या कर दी गई तो उसके बाद मोहम्मद गौरी के सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई को घेरना चालू कर दिया। इस प्रकार तुर्क लोगों के हाथों मरने से अच्छा इन दोनों ने यह निश्चय किया किया कि यह अपनी जीवन लीला अपने आप ही समाप्त कर लेंगे। इसके बाद दोनों ने कटार निकाल कर के एक दूसरे के पेट में कटार से वार कर दिया और इस प्रकार से कुछ ही देर में अत्याधिक खून बह जाने के कारण इन दोनों की भी मौत हो गई। दूसरी तरफ जब महारानी संयोगिता को पृथ्वीराज चौहान और चंद्र बरदाई की मृत्यु की जानकारी हुई तो उन्होंने भी बिस्तर पर लेटे-लेटे अपने प्राण त्याग दिए।
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